Saturday, 11 July 2020

विकास दुबे का एनकाउंटरः सबकी अपनी-अपनी पिक्चर

सबके दिमाग में अपनी-अपनी पिक्चर चल रही हैADS -गैंग्स ऑफ वासेपुर में रामाधीर सिंह गुरुवार रात विकास दुबे के साथ जो हुआ उसको लेकर भी सबके दिमाग में अपनी-अपनी पिक्चर हैं. पहली पिक्चर उज्जैन के पुलिस ट्रेनिंग स्कूल से कारों का एक काफिला निकलता है और मक्सी की तरफ दाएं मुड़ जाता है. खामोशी को तोड़ती है कंटाप की एक आवाज. कानपुर का वर्ल्ड फेमस कंटाप जैसा नहीं बल्कि सिर के पीछे हल्की से चपत, जहां छोटा दिमाग होता है. 'तो बे दुबे, कहां खाएगा, गा*ड में या आ*ड में?' एक पुलिसवाले का सवाल और सबकी हंसी छूट जाती है. 'ई तो वासेपुर का डायलॉग है' दूसरा पुलिसवाला सवाल की मौलिकता पर जैसे सवाल उठाता है. 'राते रात में कानपुर पहुंचना है, रेस दिए रहो' एक और की आवाज कार शाजापुर से आगे कानपुर की ओर बढ़ती है. 'इस च*तिये की सुबह नहीं' पीछे से कोई हिंदी फिल्म के एक टाइटल के शब्दों से विकास को कुछ कहने के लिए उकसाता है. "एनकाउंटर" में मारा गया विकास दुबे (फोटो-PTI) विकास खामोश है. न अंजाम भुगतने की धमकी देता है, न न्यायिक जांच, वर्दी उतरवा लेने या अपने राजनीतिक रसूख की. न ये कह पाता है कि पुलिसवाले जो करने की बात कर रहे हैं, अगर वो करते हैं तो कैसे वो एक क्राइम होगा. 'पाप लगेगा, ब्रह्म हत्या का पाप' इस समय वो सिर्फ यही कह सकता है. ब्राह्मण की हत्या महापाप जो मानी गई है. 'और तुम जो मिश्रा जी को मारे, वो ब्रह्महत्या नहीं था, भोस*के? ' जवाब में एक पुलिसवाला विकास के हाथों मारे गए चौबेपुर के सीओ देवेंद्र मिश्रा की हत्या की याद दिलाता है. विकास कार के रियर व्यू शीशे से देखता है. पुलिस की कारों के अलावा भी सड़क पर कारें हैं. मीडिया की गाड़ियां पीछे-पीछे भाग रही हैं. उनकी फ्लैशलाइट में उसे उम्मीद की एक किरण दिखती है. विकास को उम्मीद थी कि अगर उसने अपनी गिरफ्तारी सुबह दे दी तो वो दिन में ही ट्रांजिट हो जाएगा. दिन के उजाले में एनकाउंटर आसान नहीं होते. हालांकि कुछ मामलों में दिन में भी एनकाउंटर हुए हैं. लेकिन अब रात गहरा चुकी है और वो सड़क पर है. एसटीएफ की सिक्योरिटी में असुरक्षित. काफिला एक के बाद एक टोल प्लाजा, गहरी नींद में सोते हुए गांवों, कस्बों और कस्बे से लगने वाले इलाकों को पार करता जाता है. इस सफर में खूब हंसी ठहाका है, ज्यादातर का निशाना विकास ही है. चौबेपुर थाने के तिवारी जी जैसे उसके वर्दीवाले दोस्तों के बीच ये चुटकलेबाजी होती तो वो खुद भी इनपर हंसता. लेकिन सादा कपड़ों में मौजूद पुलिसवालों के ये जोक विकास दुबे को परेशान कर रहे थे. तकरीबन सबको लगता है कि विकास को कोरोना है. और वो मामला निपट जाने के बाद टेस्ट कराने को लेकर परेशान हैं. टेस्ट के लिए भी जुगाड़ लगाना पड़ेगा. कंटाप जड़ते हुए एक पुलिस वाला कहता है- "वैसे मैं तो कुछ दिन परिवार से दूर ही रहूंगा, सब इस ... की वजह से". कंटाप इस बार असली था. पुलिसवाले खतरा मोल ले चुके थे...कोरोना का खतरा. पौ फटने लगी है. विकास के लिए भी उम्मीद की सुबह है कि वो शायद अब दिन देख सके. लेकिन ये फीकी मुस्कान ज्यादा देर रही नहीं. मीडिया की जो गाड़ियां उसके काफिले का पीछा कर रही थीं, वो रियरव्यू से अचानक गायब हो जाती हैं. पीछे सड़क पर उनको कोरोना वायरस की चेकिंग के नाम पर रोक लिया जाता है. सूरज निकल आया था, आकाश में लालिमा छाई थी लेकिन शायद ये सबकुछ भी मजाक ही था. सड़क पर कुछ पुलिसकर्मी इशारा करते हैं और कार रुकती है. कोई कहता है 'ब्रह्म हत्या', इस बार आवाज विकास दुबे की नहीं थी. और एक ब्राह्मण अफसर को ये काम दिया जाता है ताकि बाद में भी सब कुछ ठीक रहे... तड़ तड़ तड़ की आवाज...और सब खुश. 'गाड़ी पंक्चर कर दें.' 'ये तो सेम टू सेम प्रभात मिश्रा जैसा हो जाएगा. अलग सोचो यार. गाड़ी पलट दो.' 'ये सफारी नहीं पलटी जाएगी हमसे, छुटकी पलट दें.' 'कुछ भी पलट, जल्दी कर.' इसके बाद म्यूजिक बजता है, जिसकी आवाज कुछ ऐसी होती है.. लॉ लॉ लॉ, जाग रे मुर्गा जाग लॉ लॉ लॉ, भाग सके तो भाग लॉ लॉ लॉ, सड़क के नीचे रेत लॉ लॉ लॉ, पंटर हो गया खेत लॉ लॉ लॉ, काउंटर हुआ जनाब लॉ लॉ लॉ, बराबर हुआ हिसाब लॉ लॉ लॉ, क्या मागेंगी जवाब लॉ लॉ लॉ, बाबासाहेब की किताब म्यूजिक धीमा और कहानी खत्म. ------- पिक्चर-2 पुलिस का काफिला विकास दुबे को कानपुर ला रहा था. भौंती गांव के पास तेज रफ्तार कार पलट गई. विकास दो एसटीएफ अफसरों के बीच दब गया. उन दोनों को चोट लगी थी और खून निकल रहा था. उसने एक को ढक्का दिया और दूसरे पर चढ़कर खिड़की के टूटे हुए शीशे से खुद को बाहर निकाला. उसने जख्मी अफसर की पिस्तौल छीन ली थी और भागने लगा. दूसरी कारों में सवार पुलिस वालों ने उससे रुकने को कहा. उसने रुकने की बजाय फायरिंग कर दी. इसके बाद पुलिस की ओर से भी एक से ज्यादा राउंड फायरिंग हुई. विकास को गोली लगी. उसे तुरंत कानपुर के अस्पताल लाया गया. आते ही उसने दम तोड़ दिया. ये दिन की सबसे बड़ी खबर है. नमस्कार विकास दुबे को कानपुर लाया जा रहा था, लेकिन रास्ते में भौंती गांव के पास तेज रफ्तार कार पलट गई (फोटो-PTI) पिक्चर-2 पुलिस की कहानी है. पिक्चर-1 काल्पनिक है जो उन वेब सीरीज में काम आ सकती हैं जो लिखनी शुरू हो गई हैं. इनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति अथवा व्यक्तियों से संबंध महज संयोग है. आप, इन पिक्चर में से किसी पर भी यकीन कर सकते हैं लेकिन तथ्य नहीं बदलने वाले और हम तथ्य नहीं जानते. हम क्या जानते हैं इस मामले में तथ्य ये है कि विकास दुबे एक खूंखार अपराधी था. जो लोग बुधवार को उसके एनकाउंटर की आशंका जता रहे थे, वो गुरुवार को आरोप लगाने लगे कि सुविधाजनक गिरफ्तारी दिलाकर बीजेपी विकास दुबे को बचा रही है. शुक्रवार को जब विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया, तो भी वो हैरान थे. ‘आओ ट्विस्ट करें’ नया राष्ट्रगान बन जाता है. राजनीति में पगा माहौल सुविधाजनक तर्कों के साथ दौड़ने लगता है. ये अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन तर्क ठहरते नहीं हैं. क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का विलाप अब घिसीपिटी बात है. अगर उसको अब तक मारा नहीं गया था, तो उसे बचाया जा रहा था. अब अगर वो मारा गया है, तो उसे मारा गया है क्योंकि वो खादी और खाकी से अपनी साठगांठ का खुलासा कर सकता था, और पुलिस खुद को बचाना चाहती थी. सच्चाई ये है कि विकास दुबे थाने में सत्तारूढ़ पार्टी के मंत्री की हत्या में जेल जा चुका था. उसको गिरफ्तार किया गया, मुकदमा चला और वो जेल में रहा. ऐसी किसी साठगांठ का कोई खुलासा नहीं हुआ. सारे गवाह जिनमें ज्यादातर वो पुलिसवाले थे जिन्होंने अपने थाने में उसे हत्या करते हुए देखा, मुकर गए. चार साल में ही दुबे बाहर आ गया. और हत्याएं करने के लिए, अपने राजनीतिक प्रोफाइल को मजबूत करने के लिए. अब भी वो यही सब जारी रख सकता था और अगला चुनाव लड़कर विधायक बन सकता था. ये होता क्योंकि आप जनप्रतिनिधि को नहीं मार सकते और एक बार का प्रतिनिधि, हमेशा के लिए लोकतांत्रिक ढंग से चुना हुआ नेता बन जाता है. बेशक उसके नेताओं से रिश्ते थे, ऊंचे पदों पर उसके दोस्त थे. यही वजह है कि 20 साल तक वो ये सब चलाता रहा. ये साठगांठ कोई छिपी हुई बात नहीं थी. ये यूपी है, महाराष्ट्र या दूसरे प्रदेशों जैसा नहीं, जहां या तो माफिया पर्दे के पीछे रहता है या दुबई में. यहां राजनीति और अपराध की साठगांठ का पोस्टरों-होर्डिंग्स में जमकर प्रचार होता है, ताकि कोई इससे अनजान न रहे. बच्चे-बच्चे को ये बात पता हो. उसके कबूलनामे से किसी को खतरा नहीं था. उसके पास ऐसा कोई सीक्रेट नहीं था जो वो पुलिस को बता सके. पुलिस महकमे में उसके अच्छे-खासे दोस्त थे, चौबेपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या से पहले तक वो उसके साथ काम करते थे. तो क्या इसका मतलब ये है कि हम ये एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग होने दें? जवाब है- नहीं. इसका मतलब सिर्फ इतना है कि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम से आपकी ये उम्मीद कि वो आपकी पसंद के हिसाब से फैसला दे, सही नहीं है. अदालतों में पहले से पचास लाख मुकदमे लंबित हैं और उसमें एक और जुड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता. क्या इसका मतलब ये है कि मैं एनकाउंटर को सही ठहराते हुए कानून के राज का मजाक उड़ा रहा हूं. नहीं, इसका मतलब ये है कि विकास दुबे अब मर चुका है और चौबेपुर थाना क्षेत्र के पास अब चिंता करने के लिए 98 समस्याएं हैं, 99 नहीं. क्या मैं एनकाउंटर को जायज ठहरा रहा हूं? खैर, मुझे एक किसी और बनाना रिपब्लिक के बारे में बताइये जहां पुलिस वाले उस अपराधी को न मारते हों, जिसने पुलिस वालों को मारा हो! ये लेख मूल रूप से dailyo.in में प्रकाशित हुआ था, इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Friday, 24 April 2020

लॉकडाउन के बीच आधी रात को आया मोदी सरकार का बड़ा फैसला, आज से खुलेंगी सभी दुकानें, लेकिन...

नई दिल्ली। 3 मई तक जारी लॉकडाउन के बीच शुक्रवार की देर रात को मोदी सरकार का बड़ा फैसला आया। देर रात गृहमंत्रालय ने बड़ा निर्देश जारी करते हुए देशभर में दुकानों को खोलने का आदेश जारी कर दिया। केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन के बीच बड़ा अहम आदेश जारी करते हुए देशभर में आज से तमाम दुकानों , बाजारों को खोलने का आदेश दे दिया है, हालांकि इसके साथ ही शर्तें में लगाई गई है।

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मोदी सरकार का बड़ा आदेश

लॉकडाउन के बीच सरकार ने धीरे-धीरे राहत देना शुरू कर दिया है। शुक्रवार देर रात केंद्र सरकार ने बड़ी राहत देते हुए दुकानदारों को खुशखबरी दे दी। गृह मंत्रालय ने शुक्रवार रात देश के लाखों दुकानदारों को राहत देते हुए शनिवार सुबह से सभी राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सभी रजिस्‍टर्ड दुकानों को खोलने की अनुमति दे दी है। हालांकि इसके लिए दिशानिर्देश और शर्तें रखीं गई है, जिसका पालन करना अनिवार्य होगा। गृहमंत्रालय ने जहां दुकानों को खोलने का आदेश दिया तो वहीं शॉपिंग मॉल्‍स और शॉपिंग कॉम्‍प्‍लेक्‍स को अभी कुछ दिन और इंतजार करना होगा । गृहमंत्रालय की ओर से मॉल्स और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को खोलने की अनुमति अभी नहीं मिली है।

इन शर्तों के साथ खुलेंगी दुकानें

गृह मंत्रालय ने अपने आदेश में दुकानदारों के लिए कुछ शर्तें भी लागू की हैं।

  • आज से वहीं दुकानें खुलेंगी , जो दुकानें संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के स्थापना अधिनियम के तहत रजिस्‍टर्ड होंगी।
  • दुकानों में अधिकतम 50 फीसदी स्टाफ को ही काम करने की छूट होगी।
  • दुकानदारों को सोशल डिस्‍टेंसिंग के नियमों का सख्ती से पालन करना होगा।
  • दुकान में काम करने वालों को मास्‍क लगाना अनिवार्य होगा।
  • गृह सचिव अजय भल्‍ला ने अपने आदेश में कहा है कि आवासीय परिसर के समीप स्थित और स्‍टैंड अलोन दुकानें जो नगर निगम और नगर पालिका की सीमा में आती हैं, उन्‍हें भी खोलने की अनुमति है।
  • इसके बाहर की सभी दुकानें लॉकडाउन में बंद रहेंगी।

इन जगहों पर नहीं खुलेंगी दुकानें

गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक कोरोना हॉटस्‍पॉट और कंटेनमेंट जोन में स्थित किसी भी दुकान को खोलने की अनुमति नहीं है। उन जगहों पर पहले की तरह की लॉकडाउन के निर्देशों का पालन किया जाएगा। आपको बता दें कि इससे पहले सरकार ने इससे पहले 21 अप्रैल को आदेश जारी कर स्कूली किताबों की दुकानों को खोलने की छूट दी थी। वहीं बिजली के पंखे बेचने वाली दुकानों से प्रतिबंध हटा लिया गया था। शहरी क्षेत्रों में स्थित ब्रेड फैक्टरियां और आटा मिल में भी काम करने की छूट दी गई है। आपको बता दें कि लॉकडाउन की वजह से जरूरी सामान जैसे सब्जी, फल, दवाई और किराना की दुकानों को छोड़कर सभी प्रतिष्ठानों को बंद करने का निर्देश दिया गया था। लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था पर कहरा असर पड़ रहा है। ऐसे में स्थिति को देखते हुए धीरे-धीरे लॉकडाउन में छूट दी जा रही है , ताकि गिरती अर्थव्यवस्था को संभाला जा सके।


Friday, 17 April 2020

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Sonu Mehla
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* This information is sourced from crowdsource data and can be inaccurate. Do not panic & wait for government sources to verify this data.

Sunday, 12 April 2020

कभी दूसरों की टट्टी साफ़ कर के देखिए, ऐसा लगता है


sewage workers

किसी तथाकथित ‘ऊंची’ जाति के हिंदू परिवार में पैदा होना, जिसके पास खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने की सुविधा हो, ये अपने आप में एक प्रिविलेज है. इस बात को बताना नहीं पड़ेगा कि आप शिक्षित हैं, स्कूल से लेकर कॉलेज तक अच्छा करते आए हैं. अच्छा नहीं तो कम से कम औसत. नौकरी पा चुके हैं. काबिलियत नहीं तो कम से कम इतना तो आपके पिताजी का रुतबा है ही कि कहीं आप सिफारिश लगवा सकें.

फिर भी आप अक्सर परेशान हो जाते हैं. जीवन का मतलब खोजने लगते हैं. लगता है लाइफ में अच्छा नहीं कर रहे तो और पाना चाहते हैं. घर में काम भर के बर्तन हों तो सोफ़ा चाहते हैं. सोफा हो तो टीवी, टीवी हो तो गाड़ी. आपको ये नहीं सोचना पड़ता कि अगली खुराक में क्या खाएंगे.

आपका अगर पूरा बैंक अकाउंट खाली भी हो जाता है, तो उधार मिल जाता है. कितने भी बुरे दिन आ जाएं, कभी आपकी इज्ज़त नहीं जाती. दोस्त कभी ये नहीं कहते कि मेरे घर में सोफे पर क्यों बैठे हो, जमीन पर बैठो.

क्योंकि आप ऊंची जात के हैं. आप भले ही किसी झाड़ू-पोंछा करने वाले दलित से गरीब हो जाएं, लोग आपका अपमान नहीं करेंगे. ये आप की जाति का असर है. आपने इसे चुना नहीं है, पाया है. इसी तरह अगर आप दलित हैं, तो भी आपने उसे चुना नहीं, पाया है.

 

Members of the Dalit community stick slogans on their chests during an International Human Rights rally in Kathmandu December 10, 2009. The signs read, “Where are the human rights of untouchables?”, “One-fourth of the country’s untouchables are ignored, do not lie to the world” and “Implement universal human rights or else declare the country untouchable” (L-R). The people known as the Dalits are traditionally regarded as the lowest caste in the Hindu social community. REUTERS/Navesh Chitrakar

फर्क सिर्फ इतना है कि ऊंची जाति वालों को विरासत में सम्मान मिलता है और नीची जाति वालों को अपमान.

हम अक्सर कहते हैं कि अब जातिवाद कहां रह गया है. हम कहते हैं कि शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में हर तरह के लोग एक दूसरे के साथ ट्रेवल कर रहे होते हैं. कोई किसी की जाति पूछता है क्या. हम अक्सर ये भी कहते हैं कि आरक्षण की क्या जरूरत है. कि आरक्षण से केवल कुछ जातियों को वो फायदा मिलता है जिसके वो हक़दार नहीं हैं, कुछ लोग ये भी कहते हैं कि अगर आरक्षण न होता, मेरा सिलेक्शन हो गया होता.

जब हम कहते हैं कि अब लोग खुली सोच के हैं, दलितों से भेदभाव नहीं होता, हम शायद अपने गांवों, घरों को भूल जाते हैं. जहां आज भी बाथरूम साफ़ करने वालों को पैसे हाथ में नहीं पकड़ाए जाते. अलग रख दिए जाते हैं, जिसके आपकी गैरमौजूदगी में वो उसे खुद उठा लें. जहां नौकरों के कप और बर्तन अलग कर दिए जाते हैं. जहां मजदूरों के लिए चाय तो बनती है, मगर उन्हें दी डिस्पोजेबल कप में जाती है.

फिर आप ये कहते हैं कि वो लोग गंदे होते हैं न. असल में हमारे जिस मल-मूत्र को वो साफ़ कर रहे होते हैं, वो हमारे ही शरीर से निकला होता है. जब हमारे बच्चे कपड़ों में टट्टी कर देते हैं, हम उन्हें गंदा कहकर उनसे दूर नहीं भागते. मगर मल साफ़ करने वालों के प्रति हमारे अंदर एक अजीब सी घिन भरी होती है. वही मल, जो हम उन्हें देते हैं, जो हमारे घरों की नालियों से उन तक पहुंचता है.

कभी मल साफ़ करने वालों के जीवन का एक मिनट भी जिया है?

एक लड़के ने ऐसा किया. सीवर के पानी में उतर गया. सीवर साफ़ करने वालों से बात की.

ये समदीश भाटिया हैं. इन्होंने ‘चेज’ के लिए एक डाक्यूमेंट्री बनाई है. डाक्यूमेंट्री का नाम है ‘डीप शिट’. अंग्रेजी में ये दो शब्द हम अक्सर यूज करते हैं. कभी किसी मुसीबत में होते हैं, कहते हैं, ‘आई एम इन डीप शिट.’ शिट मतलब मल या गंदगी. इस अंग्रेजी वाक्य में ‘शिट’ किसी की मुश्किलों का रूपक है. मगर ये डाक्यूमेंट्री देखकर आप जानेंगे कि असल में ‘डीप शिट’ यानी मल के दलदल में धंसे होने का क्या मतलब होता है.

 

‘हम इसे संडास नहीं बोलते. संडास बोलने में बुरा लगता है. इसे हम देसी घी के परांठे बोलते हैं.’

‘मैं ये काम नहीं करूंगा तो मालूम बम्बई का क्या होइंगा? लाखों, करोड़ों लोग बीमार पड़ेगा.’

-राजू, 54, सीवेज वर्कर

ये काम किसे पसंद आता है, मगर करना पड़ता है… गर्लफ्रेंड को नहीं पता ये काम करता हूं. बताने में शर्म आती है.

-सुमित, 19, सीवेज वर्कर

Source: Chase

‘रोज रात को दारू पीता हूं, ताकि दिनभर जो देखता हूं उसे भूल जाऊं.’

-राजू, 54, सीवेज वर्कर

‘हम हाईवे बनाना चाहते हैं तो बन जाते हैं न? सिक्स लेन, एट लेन, बारह लेन रोड बना लेते हैं. उसका पैसा होता है. नालियां बनाने का पैसा नहीं होता क्या? इसका एक ही मतलब है. आप बनाना ही नहीं चाहते.’

-बेजवाडा विल्सन, फाउंडर, सफाई कर्मचारी आंदोलन

‘हर दलित सफाई कर्मचारी नहीं है. लेकिन हर सफाई कर्मचारी दलित है. हमारी पिछली तीन पीढियां सफाई कर्मचारी रही हैं. पिताजी हर शाम काम करने बाद जब घर आते, शराब पिए होते थे. मां को पीट देते थे. मगर उनको पूरा दोष नहीं देता. दिन भर गंदगी में काम करते थे. स्ट्रेस में आकर गुस्सा कहां निकालेंगे?’

-सुनील, पीएचडी स्टूडेंट और सफाई कर्मचारी

‘मेरे पिता सीवर साफ़ करने घुसे. उसके अंदर की गैस की वजह से मर गए.’

-सुमीत, बेटा

Source: Chase

‘भगवान की मिट्टी से बना हूं. भगवान ने ये काम दिया है मुझे.’

-सौरव, नाला सफाई वर्कर

Thursday, 9 April 2020

कोरोना का कहर : जानिए किस कानून के तहत जाएंगी आपकी नौकरियां

दिल्ली। किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में कारोबार कुछ दिनों तक जारी रखने में लाचार नियोक्ता व कंपनी अपने कर्मचारियों की छंटनी कर सकती हैं। यह कानून काफी पुराना है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों के अनुसार, अगर कर्मचारी 45 दिनों तक काम नहीं करता है तो नियोक्ता उसकी छंटनी कर सकता है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगर लॉकडाउन के बाद कारोबारी गतिविधियां न सुधरी तो कर्मचारियों की छंटनी इसी कानून के तहत हो सकती है। मौजूदा लॉकडाउन के दौरान माना जाता है कि कुछ महीनों तक व्यावसायिक गतिविधियां चालू नहीं हो पाएंगी और कुछ कंपनियां व प्रतिष्ठान अपना काम चालू नहीं कर पाएंगे।

जानकारों की राय

जानकारों की राय

गुरुग्राम स्थित सेंट्रम स्ट्रेटजिक कंसल्टिंग के अनुपम मलिक ने कहा कि लगता है कि अगले 5 से 6 महीने कारोबारी गतिविधियां आरंभ नहीं हो पाएंगी और उसके बाद धीरे-धीरे कंपनियों को पर्याप्त मुनाफा नहीं होगा। औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत दिए कानूनी प्रावधानों व विकल्पों के अनुसार, अगर कोई नियोक्ता अपने कर्मचारी को प्राकृतिक आपदा के कारण काम नहीं दे पाता है तो ऐसी स्थिति में कर्मचारी को कार्य से मुक्त ही समझा जाता है। अधिनियम की धारा-2 (केकेके) के तहत इसे छंटनी की परिभाषा के तहत शामिल किया गया है।

वर्तमान स्थितियों में काम पर जाना कठिन

वर्तमान स्थितियों में काम पर जाना कठिन

मलिक ने कहा कि मौजूदा हालात में न तो कर्मचारी काम पर जा सकता है, और न ही उनकी सुरक्षा का भरोसा दिलाया जा सकता है। जाहिर है कि नियोक्ता पर कर्मचारियों के स्वास्थ्य व सुरक्षा की जिम्मेदारी है। साथ ही ग्राहकों के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि इसलिए मौजूदा लॉकडाउन और कर्फ्यू में कर्मचारी को कार्यमुक्त माना जाता है।

यह है नियम की पूरी जानकारी

यह है नियम की पूरी जानकारी

अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, अगर 12 महीने की अवधि के दौरान कोई कर्मचारी 45 दिन से अधिक अवधि तक काम नहीं करता है, तो उसे 45 दिनों की समाप्ति के बाद उसे किसी प्रकार के मुआवजे का भुगतान नहीं किया जा सकता है। बशर्ते इस प्रकार का करार नियोक्ता और कर्मचारी के बीच हो।

फिलहाल देश में लागू है लॉकडाउन

फिलहाल देश में लागू है लॉकडाउन

कोरोना वायरस के चलते देश में फिलहाल लॉकडाउन लागू है। इस स्थिति में देश की ज्यादातर उत्पादन इकाईयों में उत्पादन ठप है। कर्मचारियों को घर पर बैठने को कहा गया है। यह स्थिति कब खत्म होगी यह कोरोना महामारी पर रोकथाम के अच्छे परिणाम आने पर ही पता चलेगा। अभी तो 14 अप्रैल तक के लिए लॉकडाउन लागू है। अगर परिस्थितियां न सुधरी तों यह लॉकडाउन बढ़ाया भी जा सकता है।

TCS करा रहा Free में कोर्स, लॉकडाउन के बाद मिलेगा फायदा

Wednesday, 8 April 2020

Prevention and Precautions - Basic protective measures


Prevention and Precautions - Basic protective measures

Most people who become infected experience mild illness and recover, but it can be more severe for others. Take care of your health and protect others by doing the following:

  • Wash your hands frequently

    Regularly and thoroughly clean your hands with an alcohol-based hand rub or wash them with soap and water.

  • Maintain social distancing

    Maintain at least 2 metre (6 feet) distance between yourself and anyone who is coughing or sneezing.

  • Avoid touching eyes, nose and mouth

    Our hands touch many surfaces and can pick up viruses. Once contaminated, hands can transfer the virus to your eyes, nose or mouth.

  • Practice respiratory hygiene

    Make sure you and the people around you, follow good respiratory hygiene. This means covering your mouth and nose with your bent elbow or tissue when you cough or sneeze. Then dispose of the used tissue immediately.

  • If you have fever, cough and difficulty in breathing, seek medical care early

    Stay home if you feel unwell. If you have a high fever, moderate to severe cough and difficulty in breathing and it is worsening in short period of time, seek medical asistance and call in advance.

भारत में बढ़ेगी कोरोना मरीजों की संख्या, लेकिन घबराने की जरुरत नहीं, क्‍यों की...


पिछले एक हफ्ते में ही कोरोना से पीड़ित मरीजों की संख्या करीब-करीब दो गुनी हो चुकी है माना जा रहा है कि सरकार की सख्ती और लॉकडाउन की वजह से संक्रमण की चेन को ढूंढना अब आसान हो गया है इसीलिए अब पहले की तुलना में ज्यादा मरीज सामने आ रहे हैं। भले ही भारत में कोरोना के संक्रमण की जांच की रफ्तार पहले से बढ़ी हो मगर एक सच ये भी है कि भारत जैसे बड़े देश के लिए ये अभी भी ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर ही है। अभी तक सरकार पांच तरह के लोगों को कोरोना टेस्ट के दायरे में रखा जा रहा था।  

पहला जो विदेश से आए हों और जिनमें कोरोना के लक्षण हो- दूसरा जो विदेश से आए कोरोना मरीज के संपर्क में आए हों- तीसरा कोराना मरीज के परिजन जो उसके संपर्क में आए हों- चौथा अस्पतालों में भर्ती मरीज जिनमें कोरोना के लक्षण हो- पांचवां मेडिकल स्टाफ और डॉक्टर जिनमें कोरोना के लक्षण हो .

स्वास्थ्य विभाग से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो जितने भी लोगों में कोरोना के संक्रमण की जांच कराई जा रही है, अब उसका दायरा बढ़ाने का वक्त आ चुका है।

ऐसा इसलिए क्योंकि जितना ज्यादा से ज्यादा लोगों को जांच के दायरे में लाया जाएगा, उतना ही कोरोना को काबू करना आसान होगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस महामारी से सबसे ज्यादा जूझ रहे अमेरिका और इटली में भारत की तुलना में कहीं ज्यादा लोगों का टेस्ट कराया जा चुका है। वो भी तब जब ये दोनों देशों की आबादी भारत से कई गुना कम है। अमेरिका में अब तक करीब सवा दस लाख लोगों की जांच कराई गई है।

वहां हर दस लाख में तीन हजार से ज्यादा लोगों में संक्रमण की जांच अब तक हो चुकी है। इसी तरह इटली में अब तक साढ़े चार लाख से ज्यादा लोगों के कोरोना टेस्ट हो चुके हैं। यानी यहां हर दस लाख की आबादी में 3600 से ज्यादा लोगों को जांच के दायरे में शामिल किया गया। इनकी तुलना में अगर भारत की बात की जाए तो अब तक अब तक करीब 43 हजार लोगों में ही संक्रमण की जांच हुई है।

यानी हर दस लाख की आबादी पर सिर्फ 32 लोगों के टेस्ट। इतने बड़े पैमाने पर संक्रमण की जांच कराने के बावजूद कोरोना ने अमेरिका और इटली जैसे देशों में कत्ल-ए-आम मचा दिया है. इसका मतलब साफ है कि भारत को जांच की रफ्तार अब तेज करने का वक्त आ चुका है। सरकार ऐसा कर भी रही है कुछ दिनों पहले ही कुछ निजी प्राइवेट अस्पतालों और लेबोरेट्रीज को कुछ शर्तों के साथ कोरोना के टेस्ट की परमिशन दी गई है।

ऐसे में उम्मीद तो यही है कि आने वाले दिनों मे ज्यादा से ज्यादा लोगों को टेस्ट के दायरे में शामिल किया जाएगा ऐसे में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ेगी लेकिन घबराने की जरुरत नहीं है क्योंकि ये लोगों के भले के लिए ही है। Contact us mrsonumehla@gmail.com
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Monday, 6 April 2020

CBDT issues orders u/s 119 of IT Act,1961 to mitigate hardships to taxpayers arising out of compliance of TDS/TCS provisions

Due to outbreak of the Covid-19 pandemic, there is severe disruption in the normal working of almost all sectors. To mitigate the hardships of taxpayers, the CBDT has issued the following directions/clarifications by exercise of its power u/s 119 of the Income-tax Act, 1961 (the Act):

All the assessees who have filed application for lower or nil deduction of TDS/TCS for F.Y. 2020-21 and whose applications are pending for disposal as on date and they have been issued such certificates for F.Y. 2019-20, then such certificates would be applicable till 30.06.2020 of F.Y. 2020-21 or disposal of their applications by the Assessing Officers, whichever is earlier, in respect of the transaction and the deductor or collector if any, for whom the certificate was issued for F.Y. 2019-20. In cases where the assessees could not apply for issue of lower or nil deduction of TDS/TCS in the Traces Portal for the F.Y. 2020-21, but were having the certificates for F.Y. 2019-20, such certificates will be applicable till 30.06.2020 of F.Y. 2020-21. However, they need to apply at the earliest giving details of the transactions and the Deductor/Collector to the TDS/TCS Assessing Officer as per procedure prescribed. Further, on payments to Non-residents (including foreign companies) having Permanent Establishment in India, where the above applications are pending, tax on payments made will be deducted at the subsidised rate of 10% including surcharge and cess, on such payments till 30.06.2020 of F.Y. 2020-21, or disposal of their applications, whichever is earlier (Order passed on 31.03.2020).

In case of pending applications for lower/nil rate of TDS/TCS for F.Y. 2019-20, the Assessing Officers have been directed to dispose off the applications through a liberal procedure by 27.04.2020, so that the taxpayers may not have to pay extra tax which may cause liquidity issues to them (Order passed on 03.04.2020).

To mitigate the hardships of small taxpayers, it has been decided that if a person had submitted valid Forms 15G and 15H to the Banks or other institutions for F.Y. 2019-20, then these Forms would be valid up to 30.06.2020. This will safeguard the small tax payers against TDS where there is no tax liability (Order passed on 03.04.2020).

All the above orders passed u/s 119 of the Act are available on www.incometaxindia.gov.in  under the head Miscellaneous Communications.

Complete Press Release can be accessed: https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1611042

Monday, 30 March 2020

कोरोना सिर्फ बर्बाद नही बहुत कुछ आबाद कर जाएगा, बस यह छोटी सी शर्त है

मानव इतिहास की सबसे बड़ी और भयावह त्रासदी का रूप ले लेगा। परमाणु बम पर कूदने वाले देशों को भीगी बिल्ली बना देगा। दिन रात जीडीपी-विकास में भागने दौड़ने वालों को लॉकडाउन और कर्फ्यू का आदि बना देगा। स्वास्थ्य के साथ संस्कृति का पाठ भी आसानी से याद करा देगा। एक ऐसे मुहाने पर ला खड़ा करेगा जहां सरकारें बेबस, सड़कें सुनसान, ऑफिस वीरान और आबाद श्मशान बस नजर आएंगे।

हमारी अजीब हरकतों और सब कुछ हासिल करने की जिद्द ने आज हमें उस मुहाने पर ला खड़ा किया है जहां से सिर्फ विनास का भयानक तांडव है। शहर के शहर श्मशान बन गए हैं। क्या इटली, क्या चीन, क्या ईरान, क्या फ्रांस सब आज एक पंक्ति में खड़े नजर आ रहे हैं। कल तक हम वैश्विक ताकत बनने की होड़ में दौड़ रहे थे आज हम उस अनजाने दुश्मन से लड़ रहे जिसका ठीक-ठीक अंदाज भी नही है। स्वास्थ्य सुविधाओं में नंबर दो की हैसियत रखने वाला इटली आज लाशें उठाने और दफनाए जाने को लेकर चिंतित है। ईरान पर प्रतिबंध लगाने वाला अमेरिका आज हर मदद को तैयार है और उसी कतार में ईरान के साथ खड़ा है। दुनिया के सैकड़ों देश इस त्रासदी की विभीषिका झेल रहे हैं। कब और कैसे इससे निपटा जाएगा इज़के भी अंदाज़ ही अब तक लगाया जा सका है। न किसी के पास ठोस विकल्प है न ठोस जवाब।

परमाणु बम बनाने वाली और उसके बल पर सबकुछ हासिल करने वाली दुनिया आज आंख से नजर न आने वाले उस वायरस के आगे घुटनों के बल खड़ी है जो सुनने में बहुत आम से लगता है लेकिन मानव अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन कर उभरा है। हालांकि इस वायरस ने सब कुछ बुरा ही नही किया है। सबसे अच्छे पहलू की बात करें तो इसने दुनिया को एक कार दिया। आज दुनिया के तमाम देश एक दूसरे के साथ खड़े होने की न सिर्फ वकालत कर रहे हैं बल्कि यथासंभव एक दूसरे की मदद भी कर रहे हैं। कई देश इससे तेजी से निपट रहे तो कुछ गिरते संभालते आगे बढ़ने की कोशिश में लगे हैं।

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